चेहरा गुलाब सा तेरा
सजना तुम्हारा बेमानी लगता है मुझे प्रिय
पंखुड़ी से कोमल अधर, कजरारे नयन
जिया को जलाये हमको सताये
पर प्रीत की रीत सिखाएं
चेहरा गुलाब सा तेरा जैसे प्राची में उगता सूरज
बड़ा सच्चा बड़ा सलोना
उस पर उभरी निर्मल धवल मुस्कान
भीगे मन जैसे वर्षा की प्रथम फुहारें से धरा
नूर ऐसा कि शर्माए चांद भी
मेरे मन में इश्क जगाए
इस गुलाब से चेहरे पर निसार दिल हमारा
बड़ा सुकून मिलता है दिल को तेरे दीदार से
ठगा ठगा सा रह जाऊं मैं
जब होती नज़रें तुमसे चार
वरना तो चला रहा हर कोई यहां
आँखों से खंजर ,और अधरों से बाण!
©️अंजना प्रसाद