भाषा ज्ञान
मुझे गृह विश्राम से हुई जब थकान
सोची, चलो अर्जित करती हूँ
विदेशी-भाषा का ज्ञान,
निहोंगो (जापानी भाषा)है जिसका नाम।
घर को छोड़ कर निकल पड़ी मैं
प्राप्त करने जापानी भाषा का ज्ञान,
रिश्तेदारों को अवगत करायी
विदेशी भाषा सिखने के लिए
नामांकन करा के आयी हूँ।
जान पहचान वालों में बढ़ी मेरी शान।
किया क्योशित्सु (कक्षा ) में प्रवेश वर्षों बाद
जहाँ हुआ प्राप्त ज्ञान।
जापानी वर्ण-माला नहीं है दो-चार।
ये हैं साक्षात यामा सान (पर्वत)।
इसमें हैं तीन लिपियाँ साथ-साथ
जैसे इलाहाबाद में
तीन नदियों का संगाम महान।
मन में आया विचार।
क्या सच में पढ़ना है?
सोच लो दूसरी बार,
धैर्यता से लेना होगा काम,
सिर ओखली में क्यों डाल रही हो,
कूटने को अंजना प्रसाद।
कूटने को अंजना प्रसाद।
लघु चित्र प्रस्तुत है श्रीमान।
वर्णमाला से करती हूँ शुभारंभ।
तीन लिपियाँ इस भाषा की शान,
पहली लिपि का हिरागाना, है नाम
जिसमें 46 मोतियों,
जैसे अक्षरों की भरमार।
दूसरी लिपि काताकाना में भी,
छियालीस वर्ण से वज्र प्रहार
जिनसे बनते विदेशी और विदेशी शब्द भंडार,
काताकाना सहज कह जाते दूसरे हैं आप।
बड़ी चतुराई से किया है भेद-भाव।
काताकाना, हिरागाना नहीं अकेले
संयुक्त अक्षर भी हैं इनके साथ।
इतने वर्णमाला भी पर गए कम तो।
लिया चीन से कांजी (चित्रमाला) उधार,
जिसकी संख्या तीन हज़ार।
चित्रकारी से नहीं कभी था वास्ता मेरा,
आर्ट एक्सजिबिशन में टंगे चित्रकारी
में कभी समझ न आया छुपा किस्सा
काश! चित्रकथा समझ पाती तो,
कांजी होती अपनी साथी।
यहाँ पर कहना चाहुँगी,
पते की बात,
अपनी हिंदी भाषा सबसे महान।
पचास अक्षरों में ही है
जीवन का सार।
बेहतर होता चढ़ लेती
बेहतर होता चढ़ लेती
फ़ूजी सान (पर्वत ) दूसरी बार।
कांजी की पहेली सुलझाऊँगी
भविष्य में ये कविता,
निहोंगो में लिख पाऊँगी।
इटैलिक्स शब्द जापानी भाषा के हैं।
2 comments
とてもいです
ReplyDeleteありがとございます。
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