(Illustration: Sneha Swati)
मनुस्मृति: ।।३। ५६।।
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।
भावार्थ
जिस कुल में नारियों कि पूजा,
अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण,
दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की
पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
Meaning:
Where women are honoured, divinity blossoms there,
and wherever women are dishonoured,
all actions no matter how noble it may be,
remains unfruitful.
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।
भावार्थ
जिस कुल में नारियों कि पूजा,
अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण,
दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की
पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल है।
Meaning:
Where women are honoured, divinity blossoms there,
and wherever women are dishonoured,
all actions no matter how noble it may be,
remains unfruitful.
नारी, अनमोल कृति तु ईश्वर की
सुकोमल तन, माधुर्य से भरा मन
कभी देवी कभी अन्नपूर्णा,
कभी काली ,कभी जगदम्बा।
लाखों में बस एक ही मंथरा।
अस्तित्व ही बनी तेरी पहचान,
पुत्री,बहन, पत्नी, माँ।
धरोहर संस्कारों की है तु।
नख से शिख तक निर्मल, कोमल।
पुरुष को जग में लाने वाली,
क्यों अन्तः न कर पाया आदमी तेरे सदगुण?
युधिष्ठर ने लगाया द्रौपदी को
सुकोमल तन, माधुर्य से भरा मन
कभी देवी कभी अन्नपूर्णा,
कभी काली ,कभी जगदम्बा।
लाखों में बस एक ही मंथरा।
अस्तित्व ही बनी तेरी पहचान,
पुत्री,बहन, पत्नी, माँ।
धरोहर संस्कारों की है तु।
नख से शिख तक निर्मल, कोमल।
पुरुष को जग में लाने वाली,
क्यों अन्तः न कर पाया आदमी तेरे सदगुण?
युधिष्ठर ने लगाया द्रौपदी को
जुए की दांव पे!
सीता माँ की अग्नि परीक्षा क्यों होने दी
मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम ने ?
द्रौपदी का चीर हरण रोक न पाये
भीष्मपितामह और पिता तुल्य धृतराष्ट्र।
नर के इस विभत्त्स रूप ने
बनाया नारीत्व को अभिशाप।
महिला मुक्ति आंदोलन तभी तो आया,
#ME TOO जागरण ने विश्व को दहलाया।
बेहतर था पाषाण युग का दानव जैसा दिखता,
पर सरल ह्रदय का आदि मानव।
विदा हुई अल्हड़ बचपन, बाबुल को छोड़कर
लेकर ढेरों आशीर्वचन, बहुमूल्य उपहार के संग।
मन में घृणा-द्वेष से भरा मिला नया परिजन
निंदा भरे पत्र भेजे पिता के घर
चुप रह गयी नवेली दुल्हन आँसू के घूँट पीकर।
संस्कारो की जंजीर बनी बोझ,
मिली मारने की धमकी,
आवाज़ उठाने में सकुचाई वो,
माता-पिता का मुख सामने आया
मूक बनकर रह गयी दया की मूरत।
सात जन्मों का बंधन सात फेरों संग
निभा न पाया पति एक पल
स्नेह न दिया, अंगार शय्या पर जला दिया,
पत्नी को, समेट कर स्त्री-धन।
मिला जब-जब नारी को प्रेम, शिक्षा और सम्मान,
निखर गयी वो, संवर गयी वो
बनी अहिल्या बाई,और लक्ष्मी बाई नाना के संग,
छू ली चन्द्रमा को,सुशोभित कर रही उच्च पद
कुलवधू बनी, आयी जब ब्याह कर।
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चैत्र मास का आगमन हो चुका है और साथ में शुरू हो गयी है चैत्र नवरात्री। माँ दुर्गा की नौ दिनों तक पूजा अर्चना नर -नारी बड़ी श्रद्धा से करेंगे। एक ओर तो पुरुष देवी माँ की आराधाना करता है वंही दूसरी ओर स्त्री का सहगामी बनकर पग पग पर उसे नीचा दिखाने की कोशिश करता है।
Here I share my another poem on housewife,
'WHO AM I?'
4 comments
Your poem on the state of women and the sacrifices that she makes is very beautifully depicted. I truly agree by manusmriti in this regard.
ReplyDeleteAs you noted Indian culture has double standards w.r.t women.
A very true observation in a poetic form.!👍
Thanks for your feedback!
DeleteThe teachings from manusmriti are still to be embedded in our lives.
आज के नारी सशक्तिकरण के दौर में हम महिलाओं को खुद ही आगे आना होगा. हम कब तक अबला बन के रहेंगे. अति सुन्दर कविता
ReplyDeleteThanks for your feedback and comment.The poem 'naari "is based on the quote of manusmriti as you see which emphasize on respect of women.
DeleteWomen now are capable and strong.