शरद पूर्णिमा की रात

by - November 18, 2020



क्षितिज में ढला थका सूरज 
और बादलों की ओट से
झांके पूनम का चांद
दूधिया, धवल, शीतल
बिखेरे चांदनी,
उतर आया 
मेरा मन-प्राण। 

मेरी उलझी जिंदगी
मेरी सारी बेचैनियों पर
लेप लगाने मरहम बन 
मेरे हिस्से का झरोखा 
जोड़ता है मुझे तुमसे 
जुगनुओं से टिमटिमाते तारे
हैं साक्षी तेरे- मेरे स्नेह के। 

कोलाहल भरे जग में 
कोई स्वर नहीं 
कोई आवाज नहीं 
बरस रहा अमृत 
शनैः-शनैः 
शरद पूर्णिमा की पावन रात्रि 
मुग्धा सी मै ताकूं तुम्हे। 

सर्द हवाओं का आलिंगन 
बदले मौसम, भीनी खुशबू 
तुलसी के चौरे पर 
संध्या -दीप जला 
आशा की लौ संग 
प्रकाशित हुआ मेरा मन। 

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