नेह की ऐसी लागी लगन
कि धरा बनी जोगन
कर रही परिक्रमा अविरल
प्रियतम सूर्य की
बीतीं सदियाँ, बिता युग
स्वर्ग साक्षी, नदियाँ साक्षी।
छिटकती भास्कर के
किरणों की
अभिलाषित वसुंधरा ने ओढ़ ली
बासन्ती चुनर
प्रेमातुर, प्रेममगन
रवि के नाम की।
अप्रितम प्रेम की कथा
युग-युगान्तर से हो रही
दसों दिशाओं में
आलोकित, प्रतिबिम्बित
भूत, वर्त्तमान, भविष्य की
सीमाओं से परे...
अपूर्ण प्रेम,
मौन प्रेम,
को परिभाषित करती
प्रेम-पुजारिन,
प्रेममयी
बावरी धरा...
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