वेदना

by - December 03, 2019


                 

वायदे बहुत किये तुमने 
ख़्वाब सतरंगी भी दिखाये 
स्वछंद नील गगन के तले। 

मुद्दतों से आवाज़े गूँज रही फ़िज़ा में
 नेपथ्य से, उत्थान की...
 खेल,रंगमंच पर,जैसे परछाईयों की। 

आह ! पर  किनारों पर बँधी रही
 जैसे कश्तियाँ मज़बूत डोर से... 
ताकि ले भी न पाये हिलोरें सहज़...

अवहेलनाओं के पीछे खड़ी रही 
हर चोट से दिल को तराश दिया 
रेत सा अंतस्थ शुष्क हुआ। 

कब बदलेगी तस्वीर बेरूखी की
 साथ तो दो कभी खुशी से 
अफ़सानाों का ग़म भूल जाऊँ ।

हवाएँ कबतक चुप रहती 
बरबस 'हम' का आवरण उड़ा ले गयीं 
सच्चाई 'मैं' की उजागर हुई । 


You May Also Like

0 comments