श्रद्धा सुमन अँजुरी भर
भेंट की हमने अम्बे माँ को
एक आशा और विश्वास से
हो पायेंगे हम विजयी
क्रोध पर क्षमा से
अधर्म पर धर्म से
अत्यचार पर सदाचार से।
पड़े आहुति
शुम्भ-निशुम्भ
और चण्ड-मुण्ड
से पतित विचारों की।
हो वध,महिषासुर से
दुष्कर्म हमारे...
समाज का वह
खोखला हिस्सा,
जिसमें पनप रहे रावण
अनजाने,अनदेखे
धड़कन बढ़ाते...
वध हो उनका।
न हो संग्राम और पतन
मानवता का
मद्धम-मद्धम
भर जाये
कलश
प्रेम का...
0 comments