हरसिंगार के फूल

by - October 02, 2019


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हरसिंगार का वो वृक्ष 
हर निशा बिखेरता खुशबू 
एक रात्री में जीने को, 
समाहित हो जिस के पुष्प में 
जीवन की कविता, प्रफुल्लित होकर। 

स्मित मुस्कान लिए
 श्वेत सुमन नज़रें उठाये, प्रतीक्षारत ,
 शुभ्र गौर चन्द्र किरणों के सानिध्य को.... 
 स्नेह से चूम लेती जो
 उसकी धवल पंखुड़ियों को। 

वेदना उसकी छुपी, नहीं मुझसे
रो रही आत्मा केसरिया,अपनी नियति पर। 
तम्मना उसकी भी प्रातः के
  उजाले को नज़र भर देखने की,
देव के चरणों में अर्पित होने की...

रवि के अंगड़ाई  से 
पहले ही गिर पड़ेंगी 
व्याकुल तनु धरा पर
 श्वेत मखमली बिछौना बन 
होकर आशायें धूल-धूसरित। 

हाँ, हूँ मैं हरसिंगार कुसुम के
दुःख की राज़दार।
समेट लेती हूँ, कुछ अपनी अँजुरी में 
पंच पंखुड़ियों के कुचल कर पीसी जाने के पहले 
 बनने के लिये चुटकी भर रंग। 

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