किसके हित
लिए कौन
जला ?
प्रश्न ज्वलंत
आज है...
ऋषिकेश की
निर्मल निश्चल
गंगा
या
ऊँची इमारतें, मैट्रो
के लिए
बंजर हो
रही
धरा?
भागदौड़ भरी
जिंदगी ढूंढ
रही क्या?
कस्तूरी मृग
की तरह
दर-दर
भटक रहा।
कोलाहल है
आलोचना,
बड़ी-बड़ी।
सुख की
परिभाषा
बदल गई!
इस धरती
पर हम
"स्व" को
ढूंढ सके....
हे देव!
ज्ञान दो..
वर दो..
लिए कौन
जला ?
प्रश्न ज्वलंत
आज है...
ऋषिकेश की
निर्मल निश्चल
गंगा
या
ऊँची इमारतें, मैट्रो
के लिए
बंजर हो
रही
धरा?
भागदौड़ भरी
जिंदगी ढूंढ
रही क्या?
कस्तूरी मृग
की तरह
दर-दर
भटक रहा।
कोलाहल है
आलोचना,
बड़ी-बड़ी।
सुख की
परिभाषा
बदल गई!
इस धरती
पर हम
"स्व" को
ढूंढ सके....
हे देव!
ज्ञान दो..
वर दो..
2 comments
बहुत खुब...
ReplyDeleteशुक्रिया!
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