खुशियों का बसंत
तुम्हारे संग यह जीवन बसंत है
मोहब्बत का रंग
मनोहारी, खुशनुमा
भर गयी मन प्रांगण में
तमाम खुशियां
रंगोत्सव का त्योहार
चुपके से आया
बसंत और बहार
दोनों ही संग लेकर
गुनगुनी धूप के कुछ टुकड़े
बिखेर रहे इंद्रधनुष लबों पर
जैसे मेरी सतरंगी चुनरी,
जज्बातों की तितलियां
मेरे अंधेरों पर थिरक रही हैं
रंग गई मेरी आत्मा
मिली खुशियां मुझे और
मेरे हिस्से का आकाश
धरती के इस छोर से उस छोर तक...
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