अनुरोध में जीती नारी
वाणी मौन,मुखरित मन का संदेश
उतर आए नैयनो में नीर बन
बहुत ही सुंदर है कोमल नारी ह्रदय का अनुरोध सुनो,मांगा है उसने कभी ज्यादा नहीं
सिर्फ सम्मान और प्रेम ही चाहे...
सदा किया अनुरोध परम पिता ईश्वर से
बना रहे आशीष उनका
हो कल्याण प्रियजनों का और हो विश्व शांति
अनुरोध अजन्मी बालिका का सुनो
मारो ना उसे खिलने से पहले
अनुरोध में जीती रही स्त्री जैसे द्रौपदी और सीता सम्मान के लिए
सतयुग से कलयुग का सफर तय कर वैज्ञानिक युग आ गया
पर, अनुरोध स्त्री के संग बारहमासी नदी सी की तरह बहती ही जा रही
उसके अनुरोध से बेखबर क्यों बना है जग होकर निर्मम ?
अपनी सुरक्षा और अरमानों को पूरा करने के लिए करती विनय
कभी ईश्वर, कभी पति,कभी समाज से
अनुरोध! अनुरोध साधक सी बनी जिंदगी
कब तक नारी अबला बन कर
अपने मन की रिक्तता को भरती रहेगी?
टुटेगी अंदर की ख़ामोशी
बढ़ेगा मनोबल, जागेगा शौर्य
उससे पहले अनुरोध का मूल्य समझ लो हे पुरुष!
विनम्रता को मजबूरी ना समझो
वरना हर दिन बनेगी वो काली और दुर्गा ।
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