साल २०२०

by - December 23, 2020





यह साल अपनी अंतिम सांसे गिन रहा 
दिसंबर की सर्द हवायें ,रोमछिद्रों को भेदती
पसलियों तक पहुँच रही है 
मैं भी स्मृतियों के लिहाफ ओढ़
अपनी डायरी लिख रही हूँ। 

रिक्त आमावस्या की रात की तरह 
बीत जायेगा साल २०२० 
मैंने अपने सारे अरमानों के
बिखरे फूल समेट लिये 
जो पूर्ण ना होने की वज़ह से मुरझा गये थे। 

मुश्किलों भरा यह साल 
कितनों की उम्मीदों पर ग्रहण लगाता रहा 
बहुतेरों ने अपने व्यापार खोये 
खाने के लाले पड़े,रहने को छत नहीं
कितना कुछ ले गया... 

मिलना जुलना महज़ ख़्वाहिश रहा 
खुल कर जी भी न पाये 
कितनों ने अपने को खोया 
बंद पिंजरे में पंछी की तरह तड़पता 
पूरा साल सांसो में उलझा रहा। 

पर विश्वास को छू न पाया 
लम्हें रेत की भांति फिसल गये 
व्यथा और हर्ष पीछे छूट गये 
वरदान कहे या अभिशाप 
अब सिर्फ अनुभूतियां हैं।

-प्रकाशित अमर  उजाला 

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