रात और दिन की आँख मिचौली
और प्यार भरी ठिठोली
चली आ रही सदियों से समय के मानचित्र पर,
दूभर है दोनों का मिलन इस सृष्टि में ।
वृहद अम्बर के आनन पर दो रंग - दिन और रात
दिन में सूर्य जलाये उजालों के दिये
रात ने ओढ़ी गहन अंधेरों की दुशाला
अपने अंक में समेट ले जो जहान।
लिखने को नयी सुबह उम्मीद की कहानियाँ
रफ्ता रफ्ता पकड़ लेती जिंदगी अपनी रफ्तार
मनुष्य को जीवन के सत्य से कराने आत्मसात
धूल-धुसरित हो जब दिन हथेलियों से फिसले रेत सामान।
तन मन की अटूट थकान से परेशां इंसान
का अन्तः ढूँढे तारों भरी अद्भुत मायावी रात
जहाँ चंद्र कलश छलकाए शीतल चांदनी अमृत सा
मन की व्याकुलता पर लगाये मरहम।
ये रात और दिन कितने जुदा हैं परस्पर
सृजन हो इनका गतिमान धरती घूमे जब अपनी धुरी पर
एक वृत्त नियति की प्रकृति बनाती
दिन-रात।
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