आली रे! ढूंढ रही मैं सावन मास।
मुक्ताकाश में
स्पंदन करती काली घटा
स्नेहसिक्त होकर
धरा पर बरसाती थी जो
बूंदों की सौगात।
निशा को है
जुगनुओं की रोशनी
और झींगुर के मेघ मलहार का इंतजार ।
आली रे! ढूंढ रही मैं सावन मास।
प्रतीक्षारत प्यासी धरती
कर रही, देखो
आह्वान।
विलाप मौन है ,
धरती हो रही रेत
आयी विपत्ति
मौसम बदलने की आहट
से मृत्युलोक में
है चीत्कार।
आली रे! ढूंढ रही मैं, सवान मास।
धरा से सब मिलकर
चलों भेंजे बादलों के
नाम यह संदेश
मुख क्यों मोड़
ली है तुमने।
बरसो जंगल
नदी, ताल, समुंदर में
वसुंधरा कर रही एक टुकड़े
बादल का इंतजार।
आली रे !ढूंढ रही मैं, सावन मास।
मुक्ताकाश में
स्पंदन करती काली घटा
स्नेहसिक्त होकर
धरा पर बरसाती थी जो
बूंदों की सौगात।
निशा को है
जुगनुओं की रोशनी
और झींगुर के मेघ मलहार का इंतजार ।
आली रे! ढूंढ रही मैं सावन मास।
प्रतीक्षारत प्यासी धरती
कर रही, देखो
आह्वान।
विलाप मौन है ,
धरती हो रही रेत
आयी विपत्ति
मौसम बदलने की आहट
से मृत्युलोक में
है चीत्कार।
आली रे! ढूंढ रही मैं, सवान मास।
धरा से सब मिलकर
चलों भेंजे बादलों के
नाम यह संदेश
मुख क्यों मोड़
ली है तुमने।
बरसो जंगल
नदी, ताल, समुंदर में
वसुंधरा कर रही एक टुकड़े
बादल का इंतजार।
आली रे !ढूंढ रही मैं, सावन मास।
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