परमेश्वर की अमुल्य भेंट
संचित सिपि नयनों के अन्तः,
अश्रु ये दुर्लभ।
उर की खुशियों, वेदना को दर्शाते,
अश्रु प्रतिबिम्भ बन।
क्रंदन कर बह जाते, एक अंजुरी जल।
सैलाब बनकर बहते, शिशु के कोरे लोचन से ,
अंक में भर लेती जननी, व्यथित होकर।
अश्रु ये दुर्लभ।
काली-पुतली से अंजन चुराकर
छलक जाते मोती बनकर
घायल हो जब अन्तः मन।
मूक अधरों के बनते अस्त्र ये
अमृत सी आकर अश्रु कण,
नेत्रों में उम्मीद संजोकर।
अमृत सी आकर अश्रु कण,
नेत्रों में उम्मीद संजोकर।
बहते नयनों से जब अविरल
करते चेतन को निर्मल
ये निश्छल जल।
करते चेतन को निर्मल
ये निश्छल जल।
शहीद होता सैनिक सरहद पर,
देशवासिओं की होती आँखें नम,
श्रद्धांजलि देते नीर ये सुपावन।
आतंकी हमलों, सुनामी, भूकंम से,
भयाक्रांत होती निरीह-निर्दोष जनता,
क्यों बहते नहीं, नेताओं के चक्षु से नीर ये दुर्लभ?
नव जीवन का आलिंगन करते
मृत्यु-सेज पर विदा करते
पुष्प ये सुपावन।
4 comments
Excellent!! Mindblowing
ReplyDeleteArigatogozimasu Gaurav San!!!
DeleteFell upon this blog suddenly. Excellent poetry you truly catch the heart of the beholder
ReplyDeleteThanks for admiring my poem Ashru .
ReplyDeleteKeep visting.New updates every Wednesday.