गुलामी

by - January 30, 2019



पिछले शनिवार हमने ७० वाँ गणतंत्र दिवस बड़ी धूमधाम से मनाया और ७२ साल से हम भारतीय स्वतंत्रता दिवस बड़े हर्षोल्लास और उत्साह से मनाते आ रहे हैं। पर क्या हमारा मन स्वच्छंद हैै?
                 



क्या सच, हमने गुलामी छोड़ दी?
परतंत्रता की बेड़ी तोड़ दी?
देश स्वतंत्र पर मन परतंत्र है? 
क्या सच, हमने गुलामी छोड़ दी?

विरांगना रानियों के रक्त से सींची 
महारथियों के शौर्य से जीती आज़ादी, 
योद्दाओं के लहू से मिली स्वतंत्रता की,
क्या रखा हमने मान?
क्या सच, हमने गुलामी छोड़ दी?

गुलामी से मुक्त सुरभित आज़ादी की,
 भीनी खुशबु, भू से नभ में फैल रही थी 
धरती माँ हर्षित हो रही थी 
पर मन ही मन शंकित हो रही थी। 
क्या सच, मानव ने गुलामी छोड़ दी?

समय बुरा आएगा,
चेतावनी की बिगुल बज चूकी थी 
मानव मनोवृति क्या बदल गयी है?
परतंत्रता की बेड़ी क्या कट गयी है?
क्या सच, हमने गुलामी छोड़ दी?

जब से जीवन मैं हुआ है, 
आगाज़ टेक्नोलॉजी का 
टेलीविजन, चलचित्र का पदार्पण,
उपकरणों ने बदली जीवन शैली,
छीन लिया स्वतंत्र मन। 

तत्पश्चात आया इंटरनेट काल-दूत समान,
चुरा लिया मानस मन।
लैपटॉप तक, सब रहा सही,
 स्मार्टफोन ने 
किया कम्पित पृथ्वीलोक।

बेड़ियों में जकड़ गया मनुष्यलोक,
चारों दिशाओं का, 
सुख हर कर। 
शिशु से वृद्ध सबको लिया 
अपने वृहद् पंजों में समेट।

नयी पीढ़ी इसका हर क्षण कर रही अनुगमन
खुद को गर्त में ढ़केल कर। 
गुलामी की जंजीर अन्तः मन को कस रही 
अमृत समझ, 
विष पान कर रही। 

तीक्ष्ण वेग से विष फैल रहा,
भंवर बन सागर में डुबो रहा। 
मर्त्य लोक में
 हड़कंप मच गया है 
संग्राम छिड़ चुका है। 

हर युवा को प्रण लेना है 
गुलामी की मनोवृति,
 से परे रहना है
अन्तर्दाह से स्वयं बचना है 
पुनः बेड़ियों में नहीं बंधना है। 




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