विश्व पृथ्वी दिवस
धरा
तप्त धरा, विकल खग,
व्याकुल मन प्राण
हरियाली चूनर ,झुलस गई है
चला गया मौसम -ए -बहार
सूखे गुलशन गुलजार
बदलते ये मौसम ही जीवन का सच
छाया सबको चाहिए
वृक्ष न लगाए कोई
धरती खोने लगी है फिर से शृंगार
पर क्यों बंजर कर रहा मानव धरा?
झुलस रहीं विहगों की पांखे
सुखी नदियां, सुखी धरा
ना कर मानव निष्ठुर प्रहार
धरती मां करें बार-बार गुहार
मैंने लगाए दो वृक्ष नीम के
तुम भी लगा लो पौधे आज
तेरी सांसो का है सवाल
दे आने वाले कल को
हरी-भरी धरा का सौगात
२२/०४/२०२२
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