मातृभाषा

by - July 28, 2021




ज्ञान और अज्ञान से परे
न थी जब घनिष्ठता अक्षरों से 
न शब्दों, न मात्राओं का ज्ञान था
न बंदिश, देश और सीमाओं की थी
मन के निर्मल,पवित्र भावों से मुखरित होती मातृभाषा
मांं के आंचल में प्रेम से मुलकित होती कविता

दिलों के भावनाओं को तरंगित करती 
जाती-धर्म की बेड़ियों से परे कविता
मानवजाति में मोगरा के फूलों सी खुशबू बिखेरती
अलग-अलग भाषाओं में दिलों को आह्लादित करती 
मां की लोरी सी निर्मल कवि की कविता 
मातृभाषा सी अपनी लगती मन को छू जाती






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