भूल गए अब लिखना खत

by - October 21, 2020



लिखा था जो मैंने
हर्फ़ दर हर्फ़
शब्द फिर बने
दिल का अफसाना
मन के सांकल को खोलकर
डूबकर आत्मा के अंतः कोष में
क्या याद है तुम्हें मेरा पत्र
वो गुलाबी नोटपैड का पन्ना
जिस पर प्रेम की स्याही से
लिखी थी मैंने,
तेरे नाम एक कविता छोटी
संजोकर रखी है?
शायद नहीं
अपनी व्यस्तता में
भूल ही गए होगे
हर बार की तरह...
मैंने रचा था उसमें महावर
स्नेह का
जैसे सुर्ख लाल रंग पलाश का
अब कहां रही
पाती प्रीत की
लिखता कौन
स्पंदन हृदय का
कागज़ पर
नए युग में
गुम हो गई चिट्ठियाँ
टेक्नोलॉजी की भीड़ में।

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