दुख की गरिमा
याद है मुझे मेरे बचपन के दिन
तोड़ी थी भैया ने जब मेरी गुड़िया नयी
कितना रोई थी मैं, माँ ने तब डांट लगाई
दुःखी क्यों होती हो इतनी छोटी सी बात पर?
आया जब संताप जीवन में मनुष्य ने रचा इतिहास तब
सुन, कपिलवस्तु में एक राजा था
पीड़ा हुई थी उन्हें भी प्रजा को लाचार,
दुःखी, बीमार और मृत देखकर
निकल गए थे वह छोड़ कर राजपाट और परिवार
ब्रहम ज्ञान मिला, बने वह गौतम बुद्ध महान
किया जिन्होंने लाखों का उद्धार।
रो पड़ी थी अन्तर्रात्मा,विवश हुआ था जीवन
परतंत्र था देश और गुलामी की थी प्रगाढ़ वेदना
भभक उठी थी ज्वाला मन में हिन्दवासियों के
प्रण ली हमने लेकर रहेंगें हम स्वतंत्रता
लहराया फिर गगन में तिरंगा
पोंछ लो अश्रु संताप के,
इसमें छिपा है जीवन का गहनतम राज़
उठेगा इंसान जब संताप से ऊपर ,जागेगा आत्म विश्वास
जैसे काली घटाओं से बरसे जल-कण, स्निग्ध कर दे जो जीवन।
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