उसकी तन्हाई
पर्वत श्रृंखला सी एकांत
सन्नाटाों की वादियों में
सन्नाटाों की वादियों में
ख़ुद को तलाशती
अपनी ही काया में
मन में, हर घाव हर दंश को सहती,
मौसमों के असर से बेख़बर
अपनी ही काया में
सिमटी शून्य, मौन
अकेली औरत।मन में, हर घाव हर दंश को सहती,
मौसमों के असर से बेख़बर
उलझनों के अंगारों में जीती
अपनी ही व्यथा की लौ में जलती
उसी अलाव में खुद को सेकती
अपनी ही व्यथा की लौ में जलती
उसी अलाव में खुद को सेकती
भीड़ में भी वो एकाकी।
हर श्वांस में जीती रही प्रेम को
स्वयं की पहचान से दूर,
ऊहापोह के बीच
बिखेर के अपने रंगीन सपने
इन्द्रधनुष सी
हिस्सों में बँटी औरत।
जख़्म हृदय का हुआ गहरा लाल
छितिज़ में सूर्य की किरणों से
रक्तिम हो जैसे फ़िज़ा
अन्तः के सन्नाटों
जख़्म हृदय का हुआ गहरा लाल
छितिज़ में सूर्य की किरणों से
रक्तिम हो जैसे फ़िज़ा
अन्तः के सन्नाटों
के तरनुम पर जीती
रंजिशों पर बाँधे पट्टी, तन्हा।
रंजिशों पर बाँधे पट्टी, तन्हा।
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