पवन

by - May 20, 2020


खो कर खनकती किलकारी अपनी
आजकल बहुत शांत है हवा
लौट रही वीरानों से टकराकर
निर्जन है शहर -शहर ,डगर -डगर

ढूँढ रहा वो बच्चों को उपवन में
खाली झूलों को देता पेंग
ऊपर और ऊपर
निःसहाय पवन!

कहलाता जो प्राण वायु
चहुँ दिशाएँ ,गली-गली विराजमान
चुपके से आकर देता जीवन- दान
अत्यधिक परेशान

क्योकि! एक विषाणु
बन मौत का सौदागर तड़पा रहा
इंसान को हर श्वाँस के लिये
असहाय, है हवा।

कि कैसे फूँके प्राण
बचा ले लाखों की जान
परास्त हो महामारी
बने फिर पवन दिग्विजयी।

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