अस्तित्व की तलाश
बीता जाए जीवन अस्तित्व की तलाश में
ढूंढ रही स्त्री भी अस्तित्व अपनी सदियों से
हर नये-पुराने संबंधों के बीच में
उस दूब घास पर पड़े ओस की बूंद की तरह
भाप बन जो मिले बादलों में, बूंद बन फिर गिरे सागर में
यह नियति है या अस्तित्व?
निकले थे कभी श्रमिक गांव से शहर की ओर
रोजी-रोटी और पहचान की तलाश में...
मर्त्यलोक में चली विषाणु की आँधी ज़हरीली
अभिशप्त हुआ जीवन उनका ,भूख की मार से
कट गई काया, कटी जीवन की डोर
लूट ली भूख ने अस्तित्व,भाग्य के नाम पे।
प्रहरी बने सरहद पर खड़े वीर जवान
मौसमों के असर से बेपरवाह भूख-प्यास से बेख़बर,
धरती मां के नाम पर अस्तित्व मिटाने को प्रतिपल प्रतिबद्ध
क्या है यह वज़ूद ,बड़ा विचारणीय प्रश्न
लूट रही शांति मन की ,लपटों सी बढ़ रही अशांति
अस्तित्व के नाम पर सिर्फ गूँज रही क्रंदन ही क्रंदन ...
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