प्रार्थना

by - March 25, 2020

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 अचानक
कैसी ये विपदा, कैसी ये घड़ी?
दुनिया की हलचल शिथिल  पड़ी 
काली स्याह रात से डरावनी 
वाहनों का शोर ग़ुम है 
सन्नाटो की बस्ती है। 

 एक विषाणु बलिष्ठ,
 बन कर मौत का सौदागर,
 फैलाता पंजा,
कसता सांसों का फंदा 
 कसाव असहनीय ,
  लाखों को मौत की घाट उतारने को आतुर 
 बनाने धरती को मरघट। 

 राहगीर नहीं दूर-दूर तक
शांत  है समुन्दर 
अफ़सोस, 
हलचल की जिम्मेदारी एकांत ने ले ली है
असहनीय दर्द झेलते 
 विश्व शांत है,परन्तु शान्ति नहीं  

 पर समय क्या कभी ठहरा है?
 यात्राएं सुखद हो या दुःखद
 निर्धारित होती हैं,
 खत्म होने के लिए
योद्धाओं के माफिक लड़ रहे चिकित्सक
 बजाने जीत का बिगुल
 किसी भी पल। 

 विजय पताका सुदूर धुंध में दिख रहा
 हर शख्स को बस निभानी है 
जिम्मेदारी अपनी
 क्या फर्क पड़ता है अगर
 मंदिर मस्जिद गिरजाघर बंद है 
 मन में ही तो बसता है  ईश्वर 
  
 हर हृदय में 
प्रार्थना, दुआ ,फरियाद है 
संकट की घड़ी  टलेगी 
जल्द  ही  
मुक्त होगा विश्व
 इस परिस्थिति से...


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