बसंत पंचमी

by - January 29, 2020

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आज बसंत पंचमी है, यानि विद्या की देवी माता सरस्वती की आराधना का पावन दिन। बसंत ऋतु, ज्ञान की देवी के आगमन की खुशी में वातावरण को खुशनुमा और कुसुम से सुगन्धित कर रहा है। प्रकृति, देवी सरस्वती के स्वागत रंगों से कर, खुद का श्रृंगार कर रही है । वृक्षों पर पलाश और अमलताश के फूल ,तो क्यारियों में पीली गैंदें और उद्यान में रंगबिरंगे गुलाब के पुष्प, खेतों में पिली सरसों सबके मन को आनंदित कर रही है । माघ  माह, बसंती नूपुर की झंकार से आह्लादित हो रही। आप और हम इस शुभ अवसर  पर  बसंत पंचमी बड़े हर्षोल्लास के साथ मना  रहें है। 

 हिन्दू पंचांग के अनुसार माघ महीने में, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को, माँ सरस्वती की पूजा और आराधना की जाती है। सृष्टि की रचना को लेकर एक बहुत ही रोचक कथा इस पर्व से जुड़ी है। कथा कुछ इस प्रकार है। शास्त्रों  एवम  पुराणों की कथाओं  के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने जीवों  और मनुष्यों की रचना कर तो ली पर उन्हें सृष्टि की बड़ी उदासीन लगी।  संसार उन्हें चारों ओर सुनसान और ध्वनि हीन दिखाई दिया और वातावरण बिलकुल शांत लगा। ब्रह्मा जी बहुत मायूस और उदास हुए। अपनी सृजन से असन्तुष्ट ब्रम्हा जी, भगवान  विष्णु के पास गये और अपनी परेशानी बतायी। तब, ब्रह्मा जी भगवान् विष्णु जी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से जल निकलकर  पृथ्वी पर छिड़कते हैं |धरती पर गिरने वाले जल से पृथ्वी पर कंपन होने लगी और एक अद्भुत शक्ति के रूप में चतुर्भुजी यानि चार भुजाओं वाली सुंदर स्त्री प्रकट हुयीं, जिनके एक हाथ में वीणा, और दुसरे हाथ में वर मुद्रा, तथा बाकी अन्य दोनों हाथों  में माला और पुस्तक थी । जब देवी ने वीणा का मधुर नाद किया तो संसार के सभी जीव-जंतुओ को वाणी प्राप्त हुई | कहा जाता है कि  ब्रम्हाजी ने देवी को वाणी की 'सरस्वती 'कहा। देवी ने वाणी  के साथ-साथ विद्या और बुद्धि भी जगत को दी। संगीत की उत्पत्ति के कारण माँ सरस्वती को संगीत की देवी भी कहा जाता है। बसन्तपंचमी  को इनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। देवी को अनेकों नाम से भी जाना जाता है।  इनके प्रमुख नाम हैं  वीणावादनी ,भगवती, शारदा ,बागीश्वरी  वाग्वादिनी  कमला ,हंसवाहिनी आदि। बसंतपंचमी का दूसरा नाम 'सरस्वती पूजा' है।  

 बसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पांचवे दिन भगवान विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती है, इस वजह से इसे बसंत पंचमी कहते हैं। बसंत पंचमी को 'श्रीपंचमी' और 'सरस्वती पंचमी' के नाम से भी जाना जाता है।

ऋग्वेद में वाणी की देवी माँ सरवस्ती का वर्णन इस प्रकार किया गया है 

प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।


अर्थात देवी सरस्वती के रूप में परम चेतना हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उनका आधार माँ सरस्वती ही हैं , जिनकी  समृद्धि और स्वरुप का वैभव  बड़ा ही अद्भुत है।
   पीले रंग का इस दिन काफी महत्व होता है। पीले रंग को 'बसंती' रंग भी कहा जाता है। यह रंग समृद्धि ,प्रकाश ,ऊर्जा और आशीर्वाद का प्रतिक है। इस कारण लोग इस दिन पीले रंग के वस्त्र पहनते हैं। हिन्दू धर्म में परंपरागत रूप से बच्चों को इस दिन पहला शब्द लिखना सिखाया जाता है क्योंकि इस दिन को ज्ञान की देवी की पूजा के साथ एक नई शुरूआत मानी जाती है। कई  विद्यालयों  में देवी की प्रतिमा स्थापित की जाती  है और बच्चे श्रद्धा से पूजा अर्चना करते हैं। कलाकार चाहे वो कवि हो या लेखक,वादक ,गायक हो या नृत्यकार, सभी अपने उपकरणों की पूजा इस दिन करते हैं। 
बसंत ऋतु के आगमन से मन तथा प्रकृति का कण -कण खिल उठाता है और मन में नयी चेतना ,और उल्लास भर देता है। 

 भगवत गीता मे श्री कृष्ण भगवान ने कहा है कि "बसंत मेरें रूपों में से एक है।"
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निराला बसंत 

सखी देखो 
बसंत आया 
प्रकृति का 
दिव्य रूप रंग 
अद्भभूत 
मनमोहक 
बसंती
सुनहरी किरणों सा... 
अंतस्थ में  
दस्तक देता  
कण-कण 
को आह्लादित कर 
प्रेम का 
मर्म समझाने 
सखी, देखो 
बसंत आया... 

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