बारिश

by - July 09, 2019



                                          


निष्ठुर बन रवि अंगार बरसा रहा 
तालें, नदियाँ वृक्ष सुखा रहा  
तपती गर्मी से झुलस रही धरती
 कर रही थी बारिश का इंतजार। 

बूंद-बूंद की तलाश में 

भटक रहे थे जीव-जंतु
 मटका खाली और खाली मन प्राण
चहुं ओर बिछा रेगिस्तान।।

 विलंब, कुछ और विलंब के बाद

 सूखे नभ में घिरआये काले बादल 
लेकर खुशियों का संदेश 
घुमड़-घुमड़ कर धरा पर बरसे मेघ। 

 धरती माँ के अधरों पर आयी मुस्कान 
हुई वो आबाद पहनकर हरा परिधान
  ताल तलैया को मिला जीवनदान
  दिशाओं तक सींच रही थी धरती। 
  
मच गया हाहाकार, काले घने बादलों 
ने बरसाया उत्पात, डूब गई धरती
  मुंबई समंदर बना ,तो असम कहां बचा? 
अमेरिका का वाइटहॉउस भी डूबा। 

प्रचंड टांडव विश्व में मच रहा
 भीषण गर्मी से बर्फ पिघल रहा।  
आयी रौद्र बारिश तो बहा ले गयी  
 पर्वतों से शिलाखंड। 

ब्रह्मांड में छाया है हाहाकार
 समझ न पा रहा इंसान 
 बेरहमी से वृक्ष काट रहा 
धरती का संतुलन बिगड़ रहा। 

खुद की खुशी के लिए 
 अपने ही काल को निमंत्रण दे रहा
न होगी जब धरती,तो इस 
हाई-टेक युग में, रहेगा मनुष्य कहाँ?



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