“बड़ी ही नूतन और पावन घड़ी है। आज जीवन के पथ पर समय
आया है ज्ञान का आलोक बाँटने। ''
यह घड़ी, या वो बीती घड़ी,
या फिर ऊपर टंगी,
टिक-टिक करती दीवार घड़ी।
सीख दे रही यही,
बढ़ते रहना थमना नहीं।
पल-पल संचित होकर मैं बनी,
प्रहर से दिवस,
सालों में परिवर्तित हो गयी
समय बलशाली बन गया ।
प्रहर से दिवस,
सालों में परिवर्तित हो गयी
समय बलशाली बन गया ।
स्मरण कुछ बातें रहीं
कुछ व्योम में लुप्त हुई
कुछ व्योम में लुप्त हुई
समक्ष तुम्हारे, ज़िन्दगी तेरी
पल-पल जो घट रही,
संवार लो उसे अभी।
मनुज अधीर हो रहा ,
समय तीव्र वेग से
मुठ्ठी से फिसल रहा,
पंछी बन उड़ रहा।
मनुज अधीर हो रहा ,
समय तीव्र वेग से
मुठ्ठी से फिसल रहा,
पंछी बन उड़ रहा।
थम पाऊँगी मैं न कभी,
कितनी भी करुँ कोशिश बड़ी
विधि का विधान बदल पाऊँ
इतनी शक्ति मुझमें नहीं।
विनती मेरी सबसे यही
जी लो हर पल, हर घड़ी,
ये सीखा रही यही,
बढ़ते रहना थमना नहीं।।
4 comments
Beautiful ❤️😍
ReplyDeleteThank you!!
DeleteWow!This poem really touched my heart. Makes me wonder should I check my schedule.
ReplyDeleteYepp!time is precious.
ReplyDelete