व्हाट्सएप्प
स्नेह, मैत्री का अमूल्य सूत्रधार।
कहते हैं सभी
व्हाट्सएप्प
व्हाट्सएप्प
नहीं है भला, मैं पूछती हूँ
कैसे-ये बता?
करवाती हूँ इससे
आपका साक्षात्कार,
आपका साक्षात्कार,
हर पहलू में ये
अव्वल खड़ा।
अव्वल खड़ा।
घर के अंदर बातें करते
कतराते हैं हमारे प्यारे,
मित्रगण एक दूसरे को देख
कन्नी काट जाते।
फ़ोन का बिल न बढ़ जाये
तो बातें समेट जातें।
वहीं व्हाट्सएप्प पर देखो,
सभी दिल से मिलते-मिलाते।
मित्रता का ये सूत्रधार
गृहणियों का बना है खेवनहार,
सुन्दर सन्देश, दुनिया की सैर,
बेशुमार चुटकुलों के संग, राजनीति ज्ञान।
तीज-त्योहार मनाते हम साथ
ईद, ईस्टर, क्रिसमस, होली-दीपावली,
नये साल का अभिनंदन करते
नये साल का अभिनंदन करते
हम साथ-साथ।
मज़हब तो दिखता नहीं
हिन्दुस्तां है एक साथ।
घर-घर का बना ये वैध
आयुर्वेद है सदा इसके साथ।
इसे तो बस है इंटरनेट की प्यास।
अति तो होता ही है बुरा,
शक्कर, नमक, या धन-धान
मिठाई भी बढ़ाती, है शुगर आज।
बिगड़े बच्चों की बात नहीं करते
जो बढ़ाते उच्च रक्त चाप।
उन सन्देश की नहीं करते चर्चा,
दोपहर में करता,अभिनंदन गुड मॉर्निंग का।
एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते,
महंगे मोबाइल ले अपने हाथ।
मर्यादा भूलकर अपनी,
होता व्हाट्सएप्प बदनाम।
उन सन्देश की नहीं करते चर्चा,
दोपहर में करता,अभिनंदन गुड मॉर्निंग का।
एक-दूसरे पर कीचड़ उछालते,
महंगे मोबाइल ले अपने हाथ।
मर्यादा भूलकर अपनी,
होता व्हाट्सएप्प बदनाम।
मित्रता का यह सूत्रधार,
प्रातः से निशा तक
रखे मित्रों, परिजनों
को एक साथ।
इस चन्द पंक्तियों को FB
पर पोस्ट करती हूँ,
एक करोड़ लाइक्स मिल जाए
तो समझ लेना सबको इससे है प्यार।।
12 comments
nice one
ReplyDeleteThank you!
DeleteNice Observation!
ReplyDeleteI am glad you liked it!
DeleteNice poem mam...
ReplyDeleteArigatogozaimus!!
DeleteVery well described. Nice observations!!
ReplyDeleteThank you!
DeleteNice poem!
ReplyDeleteThanks so much!
Deleteबहुत खूब लिखा है आपने l कवि की कल्पना को अति सुंदर शब्दों में पिरोया है l
ReplyDeleteThanks!
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