गलतियाँ

by - January 23, 2019



बाल्यावस्था में हमने गलतियों की पारितोषिक में दंड को ही स्वीकार किया है। गरिमामयी क्षमा की पदचाप कहीं खो गयी है। 
मैं आज आपके समक्ष गलतियों का नवीन स्वरूप प्रस्तुत कर रही हूँ।
                

अनजाने में ही 
हो जाती हैं गलतियाँ,
बचपन में गिरना 
गिर कर फिर उठना, 
उठ कर चलना, सीखाती है 
गलतियाँ।

ना होती गलती तो,
 ज्ञान कैसे होता?
शिशु से अल्हड़ बचपन,
यौवन से वृद्धावस्था के सफ़र को 
संवारने की राह दिखातीं है 
गलतियाँ।

इरादों को दृढ़
बनाती हैं गलतियाँ।
अविराम आगे 
बढ़ने का
 साहस देती है 
गलतियाँ। 

एक गलती की,
सौ सीख देती ये,
जीवन में ज्ञान
का दीप 
जलाती हैं
 गलतियाँ।

मनुष्य में चेतना जगाती,
चेतन को निर्मल
करती हैं
 गलतियाँ।।


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3 comments

  1. Excellent. You have captured the essence of change, reflection and making progress by understanding the other action that may be called as Galtiyan

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  2. This is so well written! And very true. People shouldn't shy away from their mistakes!

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